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अमृता प्रीतम... एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही जेहन में एक सशक्त महिला की छवि उभरती है। अमृता प्रीतम पंजाबी की बहुचर्चित लेखिका हैं जिनकी रचनाओं का दुनिया भर में कई भाषाओं में अनुवाद किया गया। साहित्य अकादमी सम्मान प्राप्त करने वाली पहली महिला लेखिका थीं अमृता प्रीतम। बेबाकी और निर्भीकता उनके लेखन का पर्याय रहे। उन्होंने लगभग 100 किताबें लिखीं।
आइए जानते हैं उनकी कुछ बेहतरीन रचनाओं के बारे में।
पिंजर
पिंजर अमृता प्रीतम के द्वारा लिखा गया पंजाबी उपन्यास है जिसका हिंदी अनुवाद "कंकाल" नामक शीर्षक से किया गया। भारत के विभाजन पर लिखी सर्वश्रेष्ठ कृतियों में से एक पिंजर दो खानदानों की कहानी है जिनके बीच पीढ़ियों से टकराव चलता आ रहा है। शाह और शेख नामक हिंदू एवं मुसलमान परिवार की कहानी बयां करती पिंजर विभाजन की तस्वीर पेश करती है और इन सब के बीच झूलती नज़र आती है एक लड़की पूरो जिसका अपहरण शेखों ने किया है। उनके गिरफ्त से निकलने के बाद उसके मां बाप भी उसे अशुद्ध करार देकर अपने साथ रखने से इंकार कर देते हैं। भारतीय इतिहास की वेदना को दर्शाते पिंजर का दुनिया की आठ भाषाओं में अनुवाद किया गया है।
धरती सागर और सीपियाँ
धरती सागर और सीपियाँ अमृता प्रीतम द्वारा लिखा गया उपन्यास है। यह कहानी है चेतना, इकबाल, सुमेर, चंपा और मिन्नी की। सागर और सीपियाँ उपन्यास का नायक इकबाल और नायिका चेतना है यह उपन्यास दो शब्दों सागर और सीपी से मिलकर बना है। जिस प्रकार से सीपी जुड़ी हुई है, उसी प्रकार पुरूष से स्त्री भी जुड़ी हुई है। उसका रूप चाहे माता, बहन, पत्नी प्रेमिका आदि कोई भी हो सकता है। नारी की पीड़ा कैसी होती है, इसका अन्दाजा इस उपन्यास से लगाया जा सकता है। नारी कितने कष्टों को सहकर और जहर का घूँट पीकर भी अपने सम्मान की रक्षा करने से नहीं चूकती। ये सागर से जुड़ी हुई सीपियों के समान हैं।
प्रस्तुत उपन्यास उस कटु यथार्थ को समेटे हुए है, जिसकी जमीन पर ऐसी घटनाएँ होती हैं, जो मन के फूलों को पनपने नहीं देतीं । इसी उपन्यास में किसी की वह चेतना भी सामने आती है, जो अपनी जिन्दगी के सवाल को अपने हाथ में ले लेती हैं। चेतना, सामाजिक चलन के ख्याल को हाथ से परे हटाकर अपने प्रिय को अपने मन में हासिल कर लेती है। चेतना इस मिलन और दर्द के स्थल पर खड़ी है साथ ही सामाजिक बंधनों को तोड़ती भी नज़र आती है।
एक थी सारा
एक थी सारा अमृता प्रीतम द्वारा लिखा गया संस्मरण है। पाकिस्तान की शायरा "सारा शगुफ्ता" अमृता प्रीतम तक अपने लफ़्ज़ों से नज्म और अपनी ज़िन्दगी के किस्से सुनाती हुई पहुंचती रही। वह आधुनिक कवियों में से एक थीं, वह एक गरीब और अशिक्षित परिवार से थीं, उन्होंने कम उम्र में कई शादियाँ कीं, इन शादियों ने उन्हें मानसिक पीड़ा में डाल दिया, जिसके कारण उन्हें पागलखाने में रखा गया, कई बार पागलपन की हालत में आत्महत्या करने की कोशिश की, पर असफल रही लेकिन 4 जून 1984 को कराची में एक ट्रेन के नीचे आकर उनकी मृत्यु हो गई। इस मृत्यु ने उनके जीवन और कविता को एक नया आयाम दिया। उनकी मृत्यु के बाद अमृता प्रतिम ने उनके व्यक्तित्व पर एक किताब थी सारा लिखी, जिसमें उन्होंने सारा को पहले एक इंसान के रूप में देखा, बाद में एक महिला के रूप में, किताब में सारा के दुखद जीवन और मृत्यु को पढ़कर पाठक को सारी बातें महसूस होने लगती हैं। इस पुस्तक में अमृता प्रीतम ने सारा से संबंधित अपने अदभुत संस्मरण दिए हैं। ये सभी संस्मरण एक उपन्यास की तरह लिखे गए हैं और बेहद ही मार्मिक भाव इनके अंदर है। यह पुस्तक वास्तव में दिल से जुड़ाव की कहानी है।
रसीदी टिकट
रसीदी टिकट अमृता प्रीतम की आत्मकथा है जिसमें उन्होंने साहिर और इमरोज़ के साथ अपने रिश्ते को बखूबी बयां किया है। यह किताब प्रतीक है उनके जज्बे का और समाज के बनाते तौर तरीकों के बीच अपने आप को न बांधने का। इस किताब का शीर्षक रसीदी टिकट क्यों पड़ा इसकी कहानी भी दिलचस्प है।
मशहूर लेखक खुशवंत सिंह ने अमृता प्रीतम से सवाल किया. कहा- अपनी और साहिर की प्रेम कहानी उन्हें बताएं. दोनों की कहानी सुनने के बाद खुशवंत सिंह काफी निराश हुए. इसका जिक्र उन्होंने अपने एक लेख में किया और लिखा- दोनों की कहानी को तो एक रसीदी टिकट भर जगह में लिखी जा सकती है.
कहा जाता है कि इसी बात से प्रभावित होकर अमृता प्रीतम ने अपनी आत्मकथा का नाम रसीदी टिकट रखा. इस तरह बायोग्राफी का नाम रखा गया. इसे पढ़ना अमृता के जीवन को बिना किसी कृत्रिम आवरण के देखने जैसा है।
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